📚फ़र्ज़ उलुम 103
🔖अक़ाइद का बयान पार्ट - 103
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّ حِیْم
اَلصَّلٰوۃُ وَ السَّلَامُ عَلَیْكَ یَا رَسُولَ اللّٰه ﷺ
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🌺महबूबाने खुदा का वसीला (पार्ट 3)🌺
जारी...
🔹 नबी ﷺ की बारगाह में आ जाओ:
अल्लाह तआला फरमाता है:
{وَ لَوْ اَنَّهُمْ اِذْ ظَّلَمُوْۤا اَنْفُسَهُمْ جَآءُوْكَ فَاسْتَغْفَرُوا اللّٰهَ وَ اسْتَغْفَرَ لَهُمُ الرَّسُوْلُ لَوَجَدُوا اللّٰهَ تَوَّابًا رَّحِیْمًا}
तर्जुमा: अगर वो अपनी जानों पर जुल्म कर बैठे तो ए महबूब आपकी बारगाह में आ जाए और अल्लाह तआला से माफी चाहें और रसूल भी उनके लिए इस्तग़फ़ार करे तो अल्लाह तआला को बख्शने वाला मेहरबान पाएंगे।
(पाराह 5, सूरह निसा, आयत 64)
इमाम कुर्तुबी رحمۃاللہ تعالیٰ علیہ (मुतवफ्फा 671 हि.) ने इस आयत के तहत ये रिवायत नक़्ल की है:
हज़रत अली رَضِىَ اللهُ تَعَالىٰ عَنْهُ से रिवायत है, रसूलअल्लाह ﷺ के दफन करने के तीन दिन बाद एक अराबी हमारे पास आया, और रोज़ा शरीफ की खाके पाक अपने सर पर डाली और अर्ज़ करने लगा: या रसूलअल्लाह ﷺ जो आपने फरमाया हमने सुना और जो आप ﷺ अल्लाह तआला की तरफ से याद किया और हमने आपसे याद किया, और जो आप पर नाज़िल हुआ उसमे ये आयत भी है {وَ لَوْ اَنَّهُمْ اِذْ ظَّلَمُوْۤا} मैंने बेशक़ अपनी जान पर जुल्म किया और आपके हुज़ूर में अल्लाह से अपने गुनाहों की बख्शिश चाहने हाज़िर हुआ तो मेरे रब से मेरे गुनाहों की बख्शिश कराइए, इस पर क़ब्र शरीफ से निदा आई कि तेरी बख्शिश की गई।
अगली पोस्ट में जारी रहेगा انشاءاللہ
📓 फैज़ान ए फ़र्ज़ उलूम 2
मुसन्निफ़ - हज़रत अल्लामा मौलाना मुफ़्ती हाशिम अत्तारी अल मदनी دَامَتْ بَرکَا تُہمُ العَالِیَه
🌹ख़ानक़ाह ए अशरफ़ीया सरकार ए बुरहानपुर🌹
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